August 12, 2020

It's 2010 all over again


कभी  कभी  मेरे  दिल  मैं  ख्याल  आता  हैं 
की  ज़िन्दगी  तेरी  जुल्फों  की  नर्म  छाओं  मैं  गुजरने  पति 
तो  शादाब  हो  भी  सकती  थी 


यह  रंज-ओ-ग़म  की  सियाही  जो  दिल  पे  छाई  हैं 
तेरी  नज़र  की  शुओं  मैं  खो  भी  सकती  थी 
मगर  यह  हो  न  सका  और  अब  ये  आलम  हैं 
की  तू  नहीं, तेरा  ग़म  तेरी  जुस्तजू  भी  नहीं 
गुज़र  रही  हैं  कुछ  इस  तरह  ज़िन्दगी  जैसे,
इससे  किसी  के  सहारे  की  आरज़ू  भी  नहीं


न  कोई  राह, न  मंजिल, न  रौशनी  का  सुराग 
भटक  रहीं  है  अंधेरों  मैं  ज़िन्दगी  मेरी 
इन्ही  अंधेरों  मैं  रह  जाऊँगा  कभी  खो  कर 
मैं  जनता  हूँ  मेरी  हम-नफास, मगर  यूंही 
कभी  कभी  मेरे  दिल  मैं  ख्याल  आता  हैं

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